हालांकि शपथपत्र की शपथ को लेकर मुझे हमेशा संदेह रहा है परंतु पूर्व नौकरशाह जनाब वजाहत हबीबुल्लाह का रविवार को उच्चतम न्यायालय में दाखिल किया गया शपथपत्र अलग है।

हालांकि शपथपत्र की शपथ को लेकर मुझे हमेशा संदेह रहा है परंतु पूर्व नौकरशाह जनाब वजाहत हबीबुल्लाह का रविवार को उच्चतम न्यायालय में दाखिल किया गया शपथपत्र अलग है। उन्हें कोर्ट ने शाहीन बाग प्रकरण में वार्ताकार बनाये गये संजय हेगड़े व साधना रामचंद्रन के साथ संबद्ध किया था। वहां प्रदर्शकारियों से वार्ता को चार बार गये दोनों वरिष्ठ अधिवक्ताओं का केवल एक बार वजाहत साहब ने साथ दिया और रिपोर्ट सौंपने के एक दिन पहले उन्होंने अपना शपथपत्र अदालत में लगा दिया। मैं इस मामले के अन्य पहलुओं को स्पर्श न करते हुए केवल उनके व्यवहार और समय संगत पर विचार कर रहा हूं।वजाहत हबीबुल्लाह 1968 बैच के आईएएस अधिकारी हैं।वे केंद्र सरकार के पंचायती राज विभाग में सचिव पद तक पहुंचे। उन्हें देश का पहला मुख्य सूचना आयुक्त होने का गौरव प्राप्त है।2005 में सेवानिवृत्ति के पश्चात वे अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष भी बने। उनके अनुभव और वरिष्ठता के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें वार्ताकारों के साथ जोड़ा। शाहीन बाग प्रदर्शन नागरिकता संशोधन कानून पर गंभीर रूप धारण कर चुका है। पिछले 70 दिनों से सड़क पर धरना चलने से दिल्ली-नोएडा के बीच ओखला बैराज से आवाजाही बंद है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रदर्शनकारियों के प्रदर्शन के हक को खारिज नहीं किया परंतु आम रास्ते को गिरफ्त में लेने को नाजायज ठहराया।इसी मुश्किल को हल करने की जिम्मेदारी वार्ताकारों को दी गई थी। दोनों वार्ताकारों ने आज सोमवार को अपनी रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी परंतु वजाहत साहब तो कल ही कोर्ट हो आये थे। क्या सेवानिवृत्त आईएएस भी किसी की सदारत में काम करना पसंद नहीं करता? यह सवाल बाद को छोड़ते हैं।सवाल यह है कि क्या वजाहत हबीबुल्लाह को दोनों वार्ताकारों की रिपोर्ट की भनक लग गई या उन्हें उनकी रिपोर्ट पर भरोसा नहीं रहा।वजाहत हबीबुल्लाह ने एक प्रकार शाहीन बाग के प्रदर्शनकारियों का बचाव करते हुए दिल्ली पुलिस को ही कठघरे में खड़ा किया है। इससे यह सवाल खड़ा हो गया है कि शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों ने कोई सड़क वाकई घेर रखी है या हो-हल्ला यूं ही है। यदि सड़क खाली है तो शेष दोनों वार्ताकार क्या खाली करने के लिए प्रदर्शनकारियों को चार दिन से मना रहे थे और प्रदर्शनकारी कौन सी सड़क आधी छोड़ने को शर्त रख रहे थे। मैं वजाहत साहब के धर्म से उनके शपथपत्र को नहीं जोड़ना चाहूंगा परंतु उनके शपथपत्र में उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को मैं कैसे नजरंदाज कर सकता हूं।


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कांधला में साल में एक या दो बार आना जाना तब्लीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद के पिता हारून थे और दादा मौलाना यूसुफ। कांधला में छोटी नहर के पास एक मकान मौलाना साद के परिचितों का है, जो बंद रहता है। वह मकान सिर्फ तभी खुलता है जब मौलाना साद साल में एक या दो बार यहां आते हैं। मौलाना साद की पढ़ाई दिल्ली के निजामुद्दीन क्षेत्र से ही हुई है। काफी समय तक वह सहारनपुर में भी रहे।
गौरतलब है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री का लगातार तीसरी बार कार्यभार संभालने के बाद केजरीवाल ने बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पहली बार मुलाकात की थी।
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मौलाना साद से जुड़े रहे हैं विवाद तब्लीगी जमात के प्रमुख बनने से लेकर उसके बाद तक मौलाना साद से विवाद जुड़े रहे हैं। आरोप है कि तब्लीगी जमात का प्रमुख बनने के लिए मौलाना साद ने जमात के अन्य लोगों की राय को नजरअंदाज किया और नई परंपराएं शुरू की। उनकी तकरीर पर भी विवाद हुआ था। तब दारुल उलूम देवबंद ने भी नाराजगी जताई थी। उसको लेकर विदेश से आए उलमा ने देवबंद पहुंचकर दारुल उलूम के मोहतमिम सहित अन्य पदाधिकारियों से मुलाकात कर विवाद का पटाक्षेप करने का प्रयास किया था। विवादों के चलते दारुल उलूम में तब्लीगी जमात के आने पर पाबंदी तक लगा दी गई थी।