शाहीन बाग : प्रदर्शनकारियों ने दिल्ली-नोएडा-फरीदाबाद वाला एक रास्ता खोला
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" alt="" aria-hidden="true" />बीते दो महीने से भी अधिक समय से बंद पड़ा दिल्ली-नोएडा-फरीदाबाद सड़क आखिरकार शनिवार को खुल गया। शाहीन बाग में चल रहे नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों के आंदोलन के कारण यह सड़क बंद पड़ी थी।


प्रदर्शन के कारण बंद रास्ते को खुलवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त वार्ताकार साधना रामचंद्रन और संजय हेगड़े ने भी अपील की थी कि वह अपने प्रदर्शन को कहीं और जारी रखें लेकिन यह वो रास्ते को खाली कर दें क्योंकि इससे लाखों लोगों को परेशानी हो रही है। माना जा रहा है कि प्रदर्शनकारी सुप्रीम कोर्ट और वार्ताकारों का सम्मान करते हुए एक तरफ के रास्ते को खोलने पर जारी हुए हैं।

जानकारी के मुताबिक सड़क नंबर 9 को अब आम लोगों के आने जाने के लिए खोल दिया है, जिससे दिल्ली से नोएडा और फरीदाबाद आने और जाने वाले लोगों को काफी राहत मिलेगी। 

इन शर्तों पर माने प्रदर्नकारी

प्रदर्शनकारियों की मांग है कि उन्हें 24 घंटे सुरक्षा मुहैया कराई जाए और सुप्रीम कोर्ट इस संबंध में आदेश जारी करे। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि उन्हें मीडिया और पुलिस पर भरोसा नहीं है, हम चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी ले।  

प्रदर्शनकारियों की मांग है कि शाहीन बाग और जामिया के लोगों के खिलाफ दर्ज केस और नोटिस को वापस लिया जाए। इसके साथ ही जामिया में हुई हिंसा में पुलिस की भूमिका की भी जांच हो। वे चाहते हैं कि प्रदर्शन स्थल की सुरक्षा के लिए स्टील शीट का उपयोग किया जाए।



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कांधला में साल में एक या दो बार आना जाना तब्लीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद के पिता हारून थे और दादा मौलाना यूसुफ। कांधला में छोटी नहर के पास एक मकान मौलाना साद के परिचितों का है, जो बंद रहता है। वह मकान सिर्फ तभी खुलता है जब मौलाना साद साल में एक या दो बार यहां आते हैं। मौलाना साद की पढ़ाई दिल्ली के निजामुद्दीन क्षेत्र से ही हुई है। काफी समय तक वह सहारनपुर में भी रहे।
गौरतलब है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री का लगातार तीसरी बार कार्यभार संभालने के बाद केजरीवाल ने बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से पहली बार मुलाकात की थी।
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मौलाना साद से जुड़े रहे हैं विवाद तब्लीगी जमात के प्रमुख बनने से लेकर उसके बाद तक मौलाना साद से विवाद जुड़े रहे हैं। आरोप है कि तब्लीगी जमात का प्रमुख बनने के लिए मौलाना साद ने जमात के अन्य लोगों की राय को नजरअंदाज किया और नई परंपराएं शुरू की। उनकी तकरीर पर भी विवाद हुआ था। तब दारुल उलूम देवबंद ने भी नाराजगी जताई थी। उसको लेकर विदेश से आए उलमा ने देवबंद पहुंचकर दारुल उलूम के मोहतमिम सहित अन्य पदाधिकारियों से मुलाकात कर विवाद का पटाक्षेप करने का प्रयास किया था। विवादों के चलते दारुल उलूम में तब्लीगी जमात के आने पर पाबंदी तक लगा दी गई थी।